जमीअत ने राज्यपाल को सौंपा 10 सूत्रीय मांग पत्र
देहरादून। जमीअत उलेमा-ए-हिन्द उत्तराखण्ड की और से उत्तराखण्ड के राज्यपाल, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग व उत्तराखण्ड अल्पसंख्यक आयोग को पत्र लिख नैनीताल जनपद के हल्द्वानी में हुई घटना की निष्पक्ष न्यायिक जांच कराने की मांग की गई है। रविवार को जमीअत उलेमा-ए-हिन्द उत्तराखण्ड के प्रदेश महासचिव मौलाना शराफत अहमद कासमी ने राज्यपाल राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) को 10 सूत्रीय मांग पत्र सौंपकर कहा कि इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष न्यायिक जांच होनी चाहिए।
मौलाना शराफत ने कहा कि हल्द्वानी शहर के बनभूलपुरा क्षेत्र में 8 फरवरी 2024 को अतिक्रमण हटाने को लेकर हुई घटना में 6 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से अधिक घायल हैं, हम उक्त घटना की कड़े शब्दों में निन्दा करते है, और अफसोस का इजहार करते हैं। इस प्रकार की घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं, उत्तराखंड के इतिहास में इस तरह की हिंसा की घटना पहली बार हुई है।
किसी भी सूरत में कानून अपने हाथ में लिये जाने और सरकारी व निजी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने का जमीअत विरोध करती है। क्षेत्र में शांति व्यवस्था स्थापित कराने और उक्त प्रकरण की निष्पक्ष न्यायिक जांच कराने की मांग करते हुए निम्न बिन्दुओं पर आप का ध्यान आक्रषित कराना चाहते है।
हल्द्वानी शहर के 132 बागों को 40-40 बिघा के पट्टों में विभाजित करते हुए 90 साल की लीज दी गई थी, हल्द्वानी के थाना बनभूलपुरा क्षेत्र के अन्तर्गत मलिक का बगीचा भी इसी में शामिल है, जहा बड़ी संख्या में आबादी हो चुकी है। लीज समाप्त हो चुकी हैं, नगर निगम प्रशासन की और से पूरी बस्ती को छोड़कर मलिक के बगीचे में स्थित मस्जिद और मदरसे को ही हटाने की जिद रखी गई, जो जांच का विषय है।
हल्द्वानी के थाना बनभूलपुरा क्षेत्र के अन्तर्गत मलिक के बगीचे में स्थित मस्जिद और मदरसे को दिनांक 8 फरवरी 2024 को नगर निगम द्वारा बुलडोजर से धवस्त कर दिया गया। जबकि उक्त मामले में उच्च न्यायालय में 14 फरवरी 2024 को सुनवाई होनी तय थी। यह स्थान मुस्लिम बहुल क्षेत्र में स्थित है और 1937 से मुस्लिम पक्ष द्वारा लीज पर लिया हुआ था।
उसके बावजूद जिला प्रशासन और नगर निगम द्वारा उतावला पन दिखाया गया। जिला प्रशासन और नगर निगम द्वारा कार्रवाई से पहले स्थानीय गणमानीय लोगों को विष्वास में नही लिया गया, ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर स्थानीय समुदाय की भावनाओं पर विचार करना महत्वपूर्ण है। भारत जैसे विविध और बहुलवादी समाज में धार्मिक स्थलों का विध्वंस हमेशा गहरी संवेदनशीलता का विषय रहा है। उचित होता कि स्थानीय लोगों को विष्वास में लिया होता तो उक्त घटना न होती।